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आंख फोड़वा कांड को लेकर बदनाम हुए विष्णु दयाल लगातार दूसरी बार सांसद बने,

राजनीति में जाने वाले 10 डीजीपी की कहानी:आंख फोड़वा कांड को लेकर बदनाम हुए विष्णु दयाल लगातार दूसरी बार सांसद बने, युमनाम सीधे डिप्टी सीएम बने तो प्रकाश मिश्रा एक लाख वोट से हार गए डीके पांडेय 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं, वे सीआरपीएफ के एडीजी भी रह चुके हैं, रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल हुए, लेकिन टिकट नहीं मिला
मणिपुर के डीजीपी रहे युमनाम कुमार को उनकी पार्टी एनपीपी ने 6 साल के लिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया हैकुछ घंटों पहले ही बिहार के डीजीपी से पूर्व डीजीपी हुए गुप्तेश्वर पांडे इन दिनों छाए हुए हैं। अभी मंगलवार को ही उन्होंने रिटायरमेंट से पांच महीना पहले ही वीआरएस लिया है। अब राजनीतिक गलियारों में उनके चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है। माना जा रहा है कि एनडीए की सीट पर वे विधानसभा चुनाव या वाल्मीकिनगर से लोकसभा उपचुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस पर अपने बयानों से लाइम लाइट में आए गुप्तेश्वर पांडे ने इससे पहले 2009 में भी इस्तीफा दिया था और बक्सर लोकसभा सीट से दावेदारी पेश की थी। हालांकि ऐन वक्त पर भाजपा ने सिटिंग कैंडिडेट लालमुनि चौबे को टिकट दे दिया था। जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था।

गुप्तेश्वर पांडे को वीआरएस लेने की घटना को पॉलिटिकल माइलेज जरूर मिल रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पहली बार कोई डीजीपी राजनीति में एंट्री लिया है। इससे पहले भी दर्जनभर से ज्यादा डीजीपी राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। कई सफल भी हुए हैं तो कइयों को निराशा भी हाथ लगी है।

  1. विष्णु दयाल राम : आंख फोड़वा कांड को लेकर चर्चा में आए, 2019 में लगातार दूसरी बार चुने गए सांसद

1980 के दशक में बिहार में आंख फोड़वा कांड को लेकर सियासत काफी गरमाई थी। तब अपराधियों की आंख में तेजाब डाल दिया जाता था। 30 से ज्यादा अपराधियों के आंख फोड़ने की घटना सामने आई थी। ज्यादातर घटनाएं भागलपुर में हुई थीं। तब भागलपुर के एसपी थे विष्णु दयाल राम यानी वीडी राम। इस घटना को लेकर उन पर आरोप लगे जिसकी सीबीआई जांच भी हुई। लेकिन, उनके खिलाफ सबूत नहीं मिल सका। ऐसा कहा जाता है कि साल 2003 में बनी गंगाजल फिल्म बहुत हद तक उसी घटना पर आधारित थी।

विष्णु दयाल राम झारखंड के पलामू से सांसद हैं। 1973 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे विष्णु दो बार झारखंड के डीजीपी रह चुके हैं। एक बार 2005 से 2006 और दूसरी बार 2007 से 2010 तक। बिहार के बक्सर जिले से ताल्लुक रखने वाले विष्णु रिटायरमेंट के करीब चार साल बाद 2014 में भाजपा में शामिल हुए और झारखंड की पलामू लोकसभा सीट से सांसद बने। इसके बाद 2019 में वे लगातार दूसरी बार सांसद बने। वे कई पार्लियामेंट्री कमेटी के सदस्य रह चुके हैं।

  1. युमनाम जयकुमार सिंह : डीजीपी के बाद सीधे डिप्टी सीएम बने लेकिन तीन साल बाद ही सरकार से बगावत कर दी

इस साल जून के महीने में जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा था तब मणिपुर में एनडीए अपनी सरकार बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही थी। गठबंधन के 9 विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दिया था। इस बगावत के सूत्रधार थे यहां के डिप्टी सीएम युमनाम जयकुमार। जिसके बाद एनडीए सरकार अल्पमत में आ गई थी। जैसे तैसे सरकार तो बच गई लेकिन युमनाम की छुट्टी हो गई। हाल ही में एनपीपी ने उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया है।

65 साल के युमनाम जयकुमार सिंह की गिनती पूर्वोत्तर के बड़े नेताओं में होती है। अभी वे उरिपोक विधानसभा क्षेत्र से नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के विधायक हैं। इससे पहले वे मणिपुर के उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।1976 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे युमनाम 2007 से 2012 तक मणिपुर के डीजीपी रहे। रिटायरमेंट के करीब 5 साल बाद उन्होंने उन्होंने राजनीति में एंट्री ली। 2017 में उरिपोक सीट से जीत दर्ज करने के बाद वे एन वीरेन सिंह की सरकार में उपमुख्यमंत्री बने।

  1. डीके पांडेय : रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल हुए, टिकट के लिए दावेदारी की लेकिन चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला
    डीके पांडेय 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। वे सीआरपीएफ के एडीजी भी रह चुके हैं। 2015 में उन्हें झारखंड का डीजीपी बनाया गया था। वे मार्च 2019 तक झारखंड के डीजीपी रहे। रिटायरमेंट के बाद अक्टूबर 2019 में पांडेय भाजपा में शामिल हो गए।

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