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किसान बचाओ रैली:कुरुक्षेत्र में जुटने से किसानों को नहीं रोक पाई पुलिस, लाठीचार्ज-
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रैली में जाने से रोकने पर किसानों ने लगाया जाम, पुलिस ने लाठियां बरसाईं;

केंद्र अध्यादेशों के विरोध में रैली:प्रशासन मनाने और व्यवस्था करने में रहा फेल, रैली में जाने से रोकने पर किसानों ने लगाया जाम, पुलिस ने लाठियां बरसाईं; फिर इजाजत भी दे दी चार दिनों में मांगे नहीं मानी तो 15 से धरने, 20 को प्रदेशभर में रोड जाम
पुलिस ने ट्रैक्टर पर चढ़कर पीटा, किसानों ने फेंके पत्थर, कई घायलकृषि में सुधार के लिए केंद्र सरकार की ओर से जारी 3 अध्यादेशों के खिलाफ गुरुवार को कुरुक्षेत्र में भारतीय किसान यूनियन, 17 किसान संगठनों, आढ़तियों द्वारा बुलाई गई ‘किसान बचाओ-मंडी बचाओ’ रैली को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ। रैली पर प्रशासन ने कोरोना के कारण पहले से रोक लगा रखी थी। प्रशासन किसानों को मनाने और रैली में जाने से रोकने में विफल साबित हुआ।

पाबंदी के बावजूद पिपली में हजारों किसानों की भीड़ देख पुलिस व प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए। किसानों को रैली स्थल पर जाने से रोकने के लिए पिपली ओवरब्रिज के पास नाका लगा दिया गया। करीब 3 घंटे ड्रामा चलता रहा। किसान रैली स्थल पर जाने की बात पर अड़े रहे। बेरिकेटिंग तोड़ने पर पुलिस ने 2 बार लाठियां बरसाईं। गुस्साए किसानों ने जीटी रोड पर जाम लगा दिया।

पुलिस पर पत्थर फेंके। इसमें कई लोग घायल हो गए। जीटी रोड घंटेभर जाम रहा। आखिर 1:30 बजे प्रशासन बैकफुट पर आया और रैली की इजाजत दी। रैली एक घंटे चली। इसमें भाकियू रतनमान गुट शामिल नहीं हुआ। भाकियू ने मांगों के लिए 4 दिन का समय दिया है। मांगें नहीं मानी तो 15 से धरने व 20 को प्रदेशभर में रोड जाम किए जाएंगे।

प्रशासन की ये बड़ी चूक

  1. 56 नाके तो लगाए, लेकिन जीटी रोड से आने वालों को रोकने के पुख्ता बंदोबस्त नहीं किए। 2. सीआईडी और पुलिस को अहसास नहीं था कि इतनी भीड़ भाकियू जुटा लेगी, जबकि भाकियू एक माह से किसानों से संपर्क साध रही थी। 3. मंडी में जाने का रास्ता तो रोका, लेकिन एक घंटे के जाम से ही प्रशासन बैकफुट पर आ गया। किसानों को समझाने के बजाय पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। इससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। 4. रैली पर पाबंदी की घोषणा भी प्रशासन ने दो दिन पहले ही की। इससे दूसरे जिलों में लोगों को पता भी नहीं चल पाया। 5. धारा 144 भी एक दिन पहले लगाई। इसे लेकर प्रचार प्रसार नहीं हुआ। 6. भाकियू नेताओं और रैली में आने वाले सहयोगी संगठनों के नेताओं को भी पुलिस ट्रेस नहीं कर पाई। एक दिन पहले ही हिरासत में लेने के लिए छापामारी की गई।

मौके की नजाकत देखकर रैली की इजाजत दीः डीसी

रोक के बावजूद सैकड़ों लोग पहुंच गए। रोड जाम कर दिया। एंबुलेंस तक फंस गईं। स्थिति को देखते हुए रैली की इजाजत दी गई। धारा 144 का उल्लंघन करने व रोड जाम करने वालों पर केस दर्ज कराए जाएंगे। -शरणदीप कौर बराड, डीसी

सरकार से नहीं हुई कोई बात: भाकियू

रैली की एक माह से तैयारी चल रही थी। मांगों को लेकर सरकार ने कोई बात नहीं हुई। रैली पर रोक लगाई तो भाकियू ने घोषणा कर दी थी कि किसानों को रोका तो नाके तोड़ेंगे। जाम लगाने पर रैली की इजाजत दी गई।-गुरनाम सिंह चढूनी, प्रदेशाध्यक्ष, भाकियू

गृह मंत्री विज बोले- पुलिस ने संयम से लिया काम

पुलिस ने संयम से काम लिया है। पुलिस यह चाह रही थी कि सड़क न रोकी जाए, क्योंकि कोरोना की वजह से एंबुलेंस का मूवमेंट ज्यादा हो रहा है। धरना-प्रदर्शन सभी का अधिकार है, लेकिन इसके लिए गाइडलाइन है।

भाकियू की ये मांगे

केंद्र के तीनों अध्यादेशों को वापस लिया जाए।
संसद में एमएसपी गारंटी कानून पास किया जाए।
किसानों को आढ़तियों की मार्फत ही भुगतान हो।
सभी किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा।
तीन अध्यादेशों पर सरकार व भाकियू के तर्क

अध्यादेश 1. अब पैन कार्डधारक व्यापारी या प्राइवेट एजेंसी मंडी के बाहर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा दाम पर किसान की फसल खरीद सकेंगे। पहले किसानों की फसल को सिर्फ मंडी से ही खरीदा जा सकता था। सरकार का कहना है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी।

भाकियू का तर्क: जिसके पास केवल एक पैन कार्ड है, वह फसल खरीद सकता है। जिस पर सरकारी या गैर सरकारी शुल्क नहीं है और न ही सरकार का कोई कंट्रोल होगा। इससे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और एमएसपी की शर्त खत्म हो जाएगी।

अध्यादेश 2. अब दाल, आलू, प्याज, अनाज, इडेबल ऑयल आदि को आवश्यक वस्तु के नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा खत्म कर दी है। सरकार का कहना है कि इससे किसान को अच्छे दाम मिल सकेंगे।

भाकियू का तर्क: व्यापारी अपने मुनाफे के लिए किसान की फसल कम दाम में खरीदकर बाद में बाजार में ऊंचे दाम पर बेचने लगेंगे। इससे महंगाई भी बढ़ेगी।

अध्यादेश 3. कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके तहत कंपनियां काॅन्ट्रैक्ट कर खेती करा सकेंगी। सरकार का कहना है कि कंपनी या फर्म की मांग पर किसान फसल उगाएंगे तो बेचने में आने वाली समस्या खत्म होगी।

भाकियू का तर्क: कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट कर अपने खाद, बीज, दवा किसानों को ऊंचे दामों पर बेचते हैं। फसल के समय बाजार भाव अगर कॉन्ट्रैक्ट भाव से कम हों तो गुणवत्ता में कमी निकाल कर तय मूल्य नहीं देती या रिजेक्ट कर देती हैं।

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