मेडिकल में स्वदेशी बनाम विदेशी:हम हर साल विदेश से 12 हजार करोड़ रुपए के सेकंड हैंड मेडिकल उपकरण मंगवाते हैं; 80% बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा विदेशों से आने वाले मेडिकल उपकरणों पर मैक्सिमम 7.5% तक ही कस्टम ड्यूटी लगती है
मेडिकल इक्विपमेंट भारत में बनने तो इलाज के खर्च में 30% से 50% तक कमी आएगीदेश में हर साल 42 हजार करोड़ रुपए के मेडिकल उपकरण इंपोर्ट किए जाते हैं। इनमें सर्जिकल उपकरण, इम्प्लांट और दूसरी डिवाइस शामिल हैं। देश के 80% बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा है। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ कहते हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर के अस्पताल देशी उपकरण पसंद नहीं करते। वहीं सरकारी अस्पतालों में सस्ते प्रोडक्ट्स खरीदे जाते हैं। हम जिन उपकरणों को इंपोर्ट करते हैं, उनमें 12 हजार करोड़ के उपकरण तो सेकंड हैंड होते हैं।
एम्स के पूर्व घुटना इम्प्लांट एक्सपर्ट डॉ. सी एस यादव कहते हैं कि ज्यादातर इम्प्लांट या मेडिकल उपकरण भारत में बनने लगें तो इलाज के खर्च में 30% से 50% तक कमी आ सकती है।विदेशी उपकरणों की एमआरपी वास्तविक कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती है
देश में रिसर्च, मैन पावर पर खर्च बढ़ाना होगा
पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद कहते हैं कि अगर उपकरण स्वदेशी हों तो कीमत 50-70% तक कम हो जाएगी। हालांकि, सरकार को रिसर्च डेवलपमेंट और मैनपावर पर बहुत खर्च करना पड़ेगा।
वहीं एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ का कहना है कि सरकार देशी मैन्युफैक्चरर की दिक्कतें दूर करते हुए पॉलिसी बनाए तो, भारत इस मामले में ग्लोबल फैक्ट्री बन सकता है और हम सस्ती डिवाइस बना सकते हैं।