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10 किसानों ने 500-500 रुपए जोड़कर बनाई ‘किसान प्रोड्यूसर कंपनी’ तीन साल में कंपनी का टर्नओवर 10 करोड़

10 किसानों ने 500-500 रुपए जोड़कर बनाई ‘किसान प्रोड्यूसर कंपनी’ तीन साल में कंपनी का टर्नओवर 10 करोड़ के पार पहुंचा दस किसानों ने महज पांच-पांच सौ रुपए लगाकर 5 हजार की लागत से तीन साल पहले एक कंपनी बनाई। नाम रखा ‘किसान प्रोड्यूसर कंपनी’। अक्टूबर 2017 में इसका रजिस्ट्रेशन कराया। काम था किसानों को बढ़िया क्वालिटी के बीज, खाद और कीटनाशक खुले बाजार से काफी कम कीमत पर मुहैया कराना।

इनका एक और तरीका बेहद अनूठा था… ये ब्लॉक के बाकी किसानों को सस्ते में खेती-किसानी के सामान तो देते ही थे साथ में उन्हें अपनी कंपनी का शेयर होल्डर भी बनाते जाते थे। वो भी महज 500 रुपए में। पहले साल कड़ी मेहनत के बावजूद कंपनी लागत तक नहीं निकाल पाई। पर किसानों के बीच इनका भरोसा खूब बना और बढ़ा। किसान लगातार जुड़ते गए। महज तीन साल में कंपनी के साथ ढाई हजार से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं। कंपनी का टर्नओवर 10 करोड़ रु. तक पहुंच चुका है।‘हम लोग कभी खाद के लिए, तो कभी बीज के लिए परेशान रहते थे। बाजार में मिलने वाला कीटनाशक एक तो महंगा होता था, ऊपर से कई बार नकली निकल जाता था। खाद के लिए तो इंतजार में ही कई दिन निकल जाते थे। बीज अच्छी क्वालिटी का नहीं मिलता, तो उपज खराब हो जाती थी। उस वक्त एचसीएल फाउंडेशन नाम की संस्था जिले के तीन ब्लॉक में काम कर रही थी। हम लोग भी उससे जुड़े थे। वे हमारी मदद कर रहे थे। लेकिन, परेशानियां कम नहीं हो रही थीं। उन्होंने ही हमें इस कंपनी को बनाने का रास्ता दिखाया।

हम लोगों के पास पैसा भी नहीं था। तो हम सब ने पांच-पांच सौ रुपए मिलाकर पांच हजार रुपए इकट्ठा किए। इससे कंपनी का रजिस्ट्रेशन और बाकी कागजी काम कराया। एचसीएल के क्रेडिट पर हमने शुरुआती समान खरीदा और अपना पहला सेंटर शुरू किया।

हम गांव-गांव जाते, किसानों को समझाते, उन्हें अपने साथ जोड़ते। उन्हें बाजार में जो बीज 10 से 15% के प्रॉफिट मार्जिन पर मिलता था, वो हमने 2% के मार्जिन पर देना शुरू किया। साथ में इन किसानों को हम 500 रुपए में कंपनी का शेयर होल्डर भी बनाते गए। किसानों को अच्छा सामान भी मिला और कंपनी में हिस्सेदार भी। इस तरह करते-करते हमने पहले साल करीब 800 किसानों को अपने साथ जोड़ लिया। बीएससी एग्रीकल्चर और एमएससी एग्रीकल्चर किए हुए हमारे साथी बीज और दवाई ले जाने वाले किसानों की फील्ड विजिट भी करते। जहां जरूरत होती उनकी बिना पैसे की मदद करते। ये सिलसिला आज भी जारी है। इस सब के बाद भी पहले साल हम अपनी लागत भी नहीं निकाल पाए।

लेकिन, जो मेहनत हमने पहले साल की उसका फायदा हमें दूसरे साल मिला। हर किसान हमारे साथ जुड़ना चाहता था। हमारे पास डिमांड इतनी ज्यादा हो गई कि सप्लाई नहीं कर पा रहे थे। कई बार ऐसा हुआ कि हमें सरकार को खत लिखकर खाद की सप्लाई के लिए निवेदन करने पड़े। अभी भी ऐसे हालात बनते रहते हैं। किसान जुड़ते गए और हमारा काम बढ़ता गया। कछौना ब्लॉक से शुरू हुआ हमारा सफर अब तीन ब्लॉक तक पहुंच चुका है। चार सेंटर शुरू हो गए हैं। इस वक्त ढाई हजार किसान हमारे साथ जुड़े हुए हैं।

कोरोना ने हमारी रफ्तार रोकी है। सप्लाई चेन टूटने से हमें इस बार की बोवनी में काफी परेशानी भी आई, लेकिन हम रुके नहीं हैं। दिन रात लगातार काम कर रहे हैं। किसानों को अपने साथ जोड़ रहे हैं। हमारा टर्नओवर दूसरे साल 1.7 करोड़ से ज्यादा का था। जो इस साल 10 करोड़ रुपए के पार पहुंच गया है।

अभी तक हम इनपुट पर काम कर रहे थे। पिछले साल से हमने किसानों की उपज भी एमएसपी पर खरीदी। हमने जमीन भी खरीदी, जहां हम आउटपुट पर भी काम करना शुरू करने वाले थे। कोरोना के कारण यह काम रुक गया है, लेकिन आगे उम्मीद है कि हम जल्द ही यह भी शुरू कर लेंगे। हम किसान को जुताई, खाद, बीज, कीटनाशक से लेकर उसकी उपज खरीद तक हर तरह से मदद करना चाहते हैं।’v

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