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आस्था:90 साल बाद बेड़े में नहीं तैरेंगे वामन भगवान, जलाभिषेक के बाद ही मंदिरों में स्थापित हो

आस्था:90 साल बाद बेड़े में नहीं तैरेंगे वामन भगवान, जलाभिषेक के बाद ही मंदिरों में स्थापित हो जाएंगे हिंडोले कोरोना संकट की वजह से अम्बाला के सबसे पुराने वामन द्वादशी मेले की कई परंपराएं नहीं निभाई जाएंगीवामन द्वादशी मेले में कोरोना संक्रमण की वजह से एक और 90 साल पुरानी परंपरा नहीं निभाई जा सकेगी। इस बार 5 मंदिरों के हिंडोलों (डोले) को नवरंग राय तालाब में बेड़े में बैठाकर परिक्रमा नहीं कराई जाएगी। बल्कि 5 डोलों का सिर्फ जलाभिषेक होगा और उसके बाद उन्हें वापस मूल मंदिरों में स्थापित कर दिया जाएगा।

मेले का आयोजन संभालने वाली सनातन धर्म सभा के सेक्रेटरी विनाेद गर्ग ने बताया कि जिस बेड़े में इन हिंडाेलों को रखकर तालाब की परिक्रमा कराई जाती है, उसमें बैठने के लिए लोगों में होड़ मचती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस वाहन को स्वयं शेषनाग अपने सिर पर बैठाकर परिक्रमा करवाते हैं। इसी वजह से इसमें बैठने के लिए भक्तों में बेहद उत्साह होता है।

लेकिन इस बार प्रशासन के निर्देशानुसार बेड़े में बैठाकर भगवान को परिक्रमा नहीं करवाई जाएगी। हर बार मेला 3 दिन का होता था और आखिरी दिन हिंडोलों के नौरंग राय तालाब में तैराया जाता था। इस बार 29 अगस्त को एक दिन में ही मेला सिमट जाएगा। जब से मेला शुरू हुआ तब से वामन भगवान को पंजीरी के प्रसाद (नवैध) का भाेग लगता आ रहा है। इस बार कोरोना के चलते भगवान को मंदिरों में भाेग लगेगा लेकिन बाहर वितरण नहीं होगा।
दूसरी पुश्त बना रही बेड़ा
जगाधरी गेट के ज्ञान चंद ने करीब 80 साल तक हिंडोलों के लिए बेड़ा बनाया। 4 साल पहले 98 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई। तब से उनका बेटा निर्मल इस बेड़े को बनाता है। 54 वर्षीय निर्मल पेश से राजमिस्त्री हैं। निर्मल बताते हैं कि पिता से ही बेड़ा बनाना सीखा। हर साल मेले से पहले ही बेड़ा बनाना शुरू कर देते थे लेकिन इस बार कोरोना के चलते बेड़ा नहीं बना रहे हैं। ड्रम, लकड़ियाें व बणियां आदि से बेड़े को बनाने में 5 दिन लगते हैं।

लाला मुंशी राय नाैरियान ने शुरू की हिंडौला परंपरा
ठाकुरद्वारा ट्रस्ट साेसाइटी के प्रधान 76 वर्षीय वेदप्रकाश गाेयल नौहरिया ने बताया कि 1930 के दशक के आसपास उनके दादा लाला मुंशीराम नाैहरिया ने नाैहरियान मंदिर से हिंडोला ले जाने की प्रथा शुरू की थी। दादा मूलरूप से राजस्थान के झुंझनू से यहां आकर बसे थे। उस समय मंदिर में महंत श्याम दास ने पहला हिंडोला अपने कंधाें पर उठाया था। तब सराफा बाजार को नाैरियान बाजार के नाम से जाना जाता था। उसके बाद से अन्य मंदिरों बड़ा ठाकुरद्वारा, कलाल माजरी, कलाजमाजरी खेड़ा, श्री राधेश्याम मंदिर से हिंडाेला जाना शुरू हुआ। इस बार हिंडोलों (डोले) को कंधे पर उठाकर जुलूस की शक्ल में ले जाने की बजाय टाटा-एस में रखकर पुरानी अनाज मंडी के पंडाल तक ले जाया जाएगा।

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