Kargil Vijay Diwas: ‘कारगिल वॉर मेमोरियल’ एक ऐसा तीर्थस्थल जिसे देखे बिना है यहां की यात्रा अधूरी कारगिल के द्रास में स्थित ‘कारगिल वार मेमोरियल’ में द्वार पर उकेरी ‘जब आप घर जाएं तो लोगों को जरूर बताएं कि आपके कल के लिए हमने अपना आज कुर्बान किया है’ ये पंक्तियां किसी भी भारतीय को गौरवान्वित होकर शहीद सैनिकों के प्रति शीश नवाने को बाध्य कर देती हैं। यही वह जगह है, जहां देश कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने 500 से ज्यादा उन जवानों को हर साल 26 जुलाई को दिल से याद करता है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए हंसते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी।
कारगिल का वो ऐतिहासिक युद्ध
द्रास में जब से ‘कारगिल वॉर मेमोरियल’ बना, कारगिल एक तरह से तीर्थस्थल बन गया है। उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था। 8 मई, 1999 में ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी, जब पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था। बाद में भारतीय सेना के जाबांजो ने उन्हें खदेड़ कर इस युद्ध में देश को ऐतिहासिक जीत दिलाई।
कारगिल वॉर मेमोरियल
यह वॉर मेमोरियल न सिर्फ देश, बल्कि द्रास के लोगों के लिए भी उन 500 से ज्यादा सैनिकों को अपनी यादों में ताजा रखने का एक जरिया है। कारगिल शहर से इस वार मेमोरियल की दूरी करीब 60 किमी. है। इस वॉर मेमोरियल को 9 नवंबर, 2004 को देश को समर्पित किया गया था। जहां पर तिरंगा लहराता है, उसके ठीक पीछे आपको एक तरफ टाइगर-हिल तो दूसरी ओर तोलोलिंग हिल नजर आएगा। यहां गुलाबी रंग की इमारत में दिल्ली के इंडिया गेट की तर्ज पर एक अमर जवान ज्योति जलती रहती है। वहां पर पीछे की ओर ही एक बड़ी-सी दीवार पर आपको सभी शहीदों के नाम लिखे हुए मिलेंगे। बगल में सभी शहीदों के नाम के साथ उनकी बटालियन लिखे हुए पत्थर भी लगाए गए हैं।FacebooktwitterwpEmailaffiliates
Publish Date:Sun, 26 Jul 2020 10:09 AM (IST)
Kargil Vijay Diwas: ‘कारगिल वॉर मेमोरियल’ एक ऐसा तीर्थस्थल जिसे देखे बिना है यहां की यात्रा अधूरी
Kargil Vijay Diwas लद्दाख की खूबसूरती का कोई जवाब नहीं लेकिन अगर आप यहां आए हैं और कारगिल वॉर मेमोरियल नहीं देखा तो आपकी यात्रा है अधूरी। जानेंगे क्यों यह जगह है इतनी खास।
कारगिल के द्रास में स्थित ‘कारगिल वार मेमोरियल’ में द्वार पर उकेरी ‘जब आप घर जाएं तो लोगों को जरूर बताएं कि आपके कल के लिए हमने अपना आज कुर्बान किया है’ ये पंक्तियां किसी भी भारतीय को गौरवान्वित होकर शहीद सैनिकों के प्रति शीश नवाने को बाध्य कर देती हैं। यही वह जगह है, जहां देश कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने 500 से ज्यादा उन जवानों को हर साल 26 जुलाई को दिल से याद करता है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए हंसते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी।
कारगिल का वो ऐतिहासिक युद्ध
द्रास में जब से ‘कारगिल वॉर मेमोरियल’ बना, कारगिल एक तरह से तीर्थस्थल बन गया है। उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था। 8 मई, 1999 में ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी, जब पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था। बाद में भारतीय सेना के जाबांजो ने उन्हें खदेड़ कर इस युद्ध में देश को ऐतिहासिक जीत दिलाई।
कारगिल वॉर मेमोरियल
यह वॉर मेमोरियल न सिर्फ देश, बल्कि द्रास के लोगों के लिए भी उन 500 से ज्यादा सैनिकों को अपनी यादों में ताजा रखने का एक जरिया है। कारगिल शहर से इस वार मेमोरियल की दूरी करीब 60 किमी. है। इस वॉर मेमोरियल को 9 नवंबर, 2004 को देश को समर्पित किया गया था। जहां पर तिरंगा लहराता है, उसके ठीक पीछे आपको एक तरफ टाइगर-हिल तो दूसरी ओर तोलोलिंग हिल नजर आएगा। यहां गुलाबी रंग की इमारत में दिल्ली के इंडिया गेट की तर्ज पर एक अमर जवान ज्योति जलती रहती है। वहां पर पीछे की ओर ही एक बड़ी-सी दीवार पर आपको सभी शहीदों के नाम लिखे हुए मिलेंगे। बगल में सभी शहीदों के नाम के साथ उनकी बटालियन लिखे हुए पत्थर भी लगाए गए हैं।
कैसे पहुंचें?
हाल-फिलहाल के सिचुएशन में यात्रा करना संभव नहीं वैसे आमतौर पर यहां तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
हवाई मार्ग
कारगिल के सबसे निकटतम हवाईअड्डे लेह और श्रीनगर हैं। ये हवाईअड्डे भारत के कई शहरों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं।
रेल मार्गकारगिल के लिए निकटतम रेल लिंक जम्मूतवी रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 480 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह रेलवे स्टेशन देश के कई शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
श्रीनगर-लेह सड़क मार्ग द्वारा कारगिल पहुंचा जा सकता है। यह मार्ग जून के मध्य से नवंबर तक खुला रहता है। जम्मू व कश्मीर राज्य परिवहन निगम की सामान्य एवं डीलक्स बसें नियमित रूप से इस मार्ग पर चलती हैं, जिनके माध्यम से कारगिल पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा, श्रीनगर और लेह से टैक्सी द्वारा भी कारगिल पहुंचा जा सकता है।