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लाखों रामभक्त संषर्घ करते रहे, अब जाकर यह सौभाग्य मिला है: बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष

बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बोले:500 साल पहले 1528 में बाबर के सेनापति मीर ने जब मंदिर को ध्वंस किया था, लाखों रामभक्त संषर्घ करते रहे, अब जाकर यह सौभाग्य मिला है अयोध्या जाने से पहले कहा – जिस काम के लिए अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिया, आज उस काम के पूरे होने का समय आ गया है, उसे देखकर धन्य होंगे
जयभान सिंह पवैया ने कहा है कि ये उन जैसे हजारों युवाओं ने इस ध्येय के लिए अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ अर्पित किया हैराम मंदिर के भूमिपूजन कार्यक्रम मेंं शामिल होने अयोध्या जा रहे बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया का कहना है कि जिस काम के लिए उन्होंने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिया, आज उस काम के पूरे होने का समय आ गया है। राम मंदिर के भूमिपूजन में शामिल होकर अपने सपने को पूरा होता देखकर वे धन्य होंगे। उन्होंने कहा कि ये उन जैसे हजारों युवाओं ने इस ध्येय के लिए अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ अर्पित किया है। पवैया चंबल नदी का जल और पीतांबरा पीठ की माटी लेकर सोमवार शाम को अयोध्या रवाना हो गए।

अयोध्या तो आप पहले भी कई बार गए हैं, लेकिन इस बार की यात्रा में क्या अंतर रहेगा?

एक चिर प्रतीक्षित सपना पूरा होने से भावनाओं का ज्वार हृदय में फूट रहा है। मेरे जीवन के लिए ये भावुक पल हैं। 500 साल पहले 1528 में विदेशी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर ने जब मंदिर को ध्वंस किया था, तब 1.76 लाख रामभक्तों ने मंदिर की दीवारों से चिपककर अपना बलिदान दिया था। उसके बाद भी मंदिर निर्माण के लिए लाखों रामभक्त संषर्घ करते रहे, तब यह सौभाग्य मिला है।
आप इस आंदोलन में कब और कैसे जुड़े?

मैंने 1973 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया और 1982 में निकाली गई एकात्मता यात्रा के समय संघ की योजना से मुझे विश्व हिंदू परिषद में भेजा गया। 7 अक्टूबर 1984 को सरयू नदी के तट पर संतों ने मुक्ति आंदोलन की घोषणा की और उसी समय युवाओं को इस आंदोलन की शक्ति बनाने के लिए बजरंग दल बनाने की घोषणा की गई। जिसमें विनय कटियार को उत्तरप्रदेश और मुझे मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद यह सिलसिला आगे बढ़ता गया।
इस आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव कौन-सा था?

बाबरी ढांचे का विध्वंस ही इस पूरे आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव था। उसकी वजह से ही मैदान साफ हुआ जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट का इतना स्पष्ट और ऐतिहासिक फैसला आ पाया। 6 दिसंबर 1992 को मंदिर के मैदान में रामकथा मंच पर देश के प्रमुख नेताओं के साथ मैं भी मौजूद था। देेखते ही देखते दक्षिण भारत के कुछ कार्यकर्ता गुंबद पर चढ़े और उन्हें देखकर सभी में जोश आ गया। सूर्यास्त हाेते-होते यहां सपाट मैदान बन चुका था। अंचल के कार्यकर्ताओं में भी जोश था। भिंड के पुत्तू बाबा ढांचे के एक पत्थर गिरने से शहीद हुए थे। लोग कुछ भी अनुमान लगाएं पर ये सिर्फ हनुमानजी का चमत्कार था कि कुछ ही देर में ढांचा जमीन में मिल गया।
आंदोलन का परिणाम आपकाे और परिवार को क्या भुगतना पड़ा?

दिसंबर 1993 को लालकृष्ण आडवाणी, डाॅ. मुरली मनोहर जोशी के साथ हम लोग अदालत में पेश हुए। जमानत लेने से इनकार किया। तो हमें 13 दिन के लिए जेल भेजा गया। इससे पहले महीनों भूमिगत रहकर फरारी काटी। घर पर सीबीआई के छापे पड़े। पूरे परिवार को ही कुछ न कुछ परिणाम भोगने पड़े। लेकिन अंत सुखद रहा।
इस पूरे आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान किसका मानते हैं?

हर स्तर पर सबका अलग-अलग योगदान रहा। लेकिन मंदिर निर्माण की अलख जगाने के लिए संतों का योगदान महत्वपूर्ण था। उनके सपने को सच करने का संकल्प लेकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति के कारण ही यह संभव हो सका।

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