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भाजपा विधायक ने फिर हाईकोर्ट में विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को चुनौती दी

राजस्थान का सियासी रण:भाजपा विधायक ने फिर हाईकोर्ट में विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को चुनौती दी, बसपा के 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय पर भी याचिका लगाई विधानसभा अध्यक्ष मामले में 24 जुलाई को ही आदेश पारित करते हुए खारिज कर दिया था
जिस पर कोर्ट ने कहा कि इस लिहाज से याचिका के कोई मायने नहीं हैंमंगलवार को भाजपा विधायक मदन दिलावर द्वारा हाईकोर्ट में फिर से याचिका पेश की गई है। जिसमें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनकी याचिका को खारिज करने और बसपा के विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ अपील की गई है। अभी मामले में सुनवाई का समय तय नहीं किया गया है। इससे पहले वे विधानसभा अपनी याचिका के फैसले की कॉपी लेने भी पहुंचे थे। गौरतलब है कि सोमवार को ही मदन दिलावर की पहली याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

कोर्ट ने सोमवार को पूरे मामले में कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष मामले में 24 जुलाई को ही आदेश पारित करते हुए खारिज कर दिया था। लिहाजा याचिका के कोई मायने नहीं। भाजपा नई याचिका दायर सकती है। अब मदन दिलावर द्वारा विधानसभा अध्यक्ष द्वारा याचिका को खारिज करने के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी गई है। साथ बसपा के 6 विधायकों के विलय के खिला भी याचिका फिर से लगाई गई है।

स्पीकर ने कांग्रेस में जाने वाले बसपा विधायकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की
दिलावर के वकील आशीष शर्मा ने बताया, ‘बसपा एमएलए लखन सिंह (करौली), राजेन्द्र सिंह गुढ़ा (उदयपुरवाटी), दीपचंद खेड़िया (किशनगढ़ बास), जोगेन्दर सिंह अवाना (नदबई), संदीप कुमार (तिजारा) और वाजिब अली (नगर भरतपुर) के कांग्रेस में विलय के खिलाफ 16 मार्च को स्पीकर से शिकायत कर अपील की थी कि इन 6 विधायकों को दलबदल कानून के तहत विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करें। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। 17 जुलाई को हमने रिमाइंडर भी दिया, लेकिन स्पीकर ने बिना सुने अर्जी ठुकरा दी। वहीं, पायलट गुट के खिलाफ याचिका पर तुरंत कार्रवाई कर दी गई।’

राजस्थान की राजनीति में बसपा का अबतक का सफर और विवाद

वर्ष 1998 : राजस्थान में बसपा का खाता पहली बार खुला। कांग्रेस को 150, भाजपा को 33 सीटें मिली। बसपा के दो विधायकों की जरूरत किसी को नहीं हुई।
वर्ष 2003 : भाजपा 120 सीटें जीत कर बहुमत में आई। कांग्रेस को 56 सीटें मिली। बसपा फिर दो सीटें लेकर आई। लेकिन, दोनों ही पार्टियों को उस समय जरूरत नहीं थी।
वर्ष 2008 : बसपा किंग मेकर बन कर उभरी। छह विधायक जीते। कांग्रेस को 96 और भाजपा को 78 सीटें मिली। सीएम अशोक गहलोत ने बसपा विधायकों का विलय कर करवा लिया।
वर्ष 2013 : भाजपा को 163 सीटों के साथ भारी बहुमत। कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट कर रह गई। बसपा के तीन विधायक जीते। लेकिन, सत्ता पक्ष को शायद इनकी जरूरत नहीं रही। विपक्ष को मजबूत करने में जरूर भूमिका रही। क्योंकि कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिल पाई थी।
वर्ष 2018 : फिर बसपा के छह विधायक जीते। कांग्रेस को 100 और भाजपा को 73 सीटें मिली। उपचुनाव में एक सीट भाजपा से छीनकर कांग्रेस 101 पर आ गई। बहुमत को और मजबूत करने के लिए गहलोत ने एक बार फिर 2008 को दोहराया और बसपा के छह विधायकों को 16 सितंबर, 2019 में विलय कर लिया गया।

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