राजस्थान की सियासी उठापटक:बसपा ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन, मायावती ने कहा- गहलोत को सबक सिखाने का समय आ गया, विधायकों के विलय के खिलाफ कोर्ट जाएगी पार्टी बसपा मुखिया ने कहा- गहलोत ने असंवैधानिक तरीके से हमारे 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराया
मायावती ने कहा- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बसपा को नुकसान पहुंचाने के लिए यह कदम उठाया थाउत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने राजस्थान में चल रहे सियासी उठापटक के बीच बड़ा ऐलान किया है। मायावती ने साफ किया कि वे कांग्रेस और अशोक गहलोत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगी। बसपा मुखिया ने कहा कि हमारे विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराना पूरी तरह से असंवैधानिक है। पार्टी इसको लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाएगी। हम इस मामले को ऐसे ही नहीं जाने देंगे। हम इसके लिए सुप्रीम कोर्ट भी जाने को तैयार हैं।
बसपा मुखिया का कहना था कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी के 6 विधायक चुने गए थे। उस समय हमने कांग्रेस को बिन शर्त समर्थन देने की बात कही थी। दुर्भाग्यवश मुख्यमंत्री गहलोत की मंशा ने हमारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। इससे पहले बसपा के सभी 6 विधायकों से कहा था कि वे राजस्थान विधानसभा में किसी भी तरह की कार्यवाही के दौरान कांग्रेस के खिलाफ वोट करेंगे। यदि वो ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया जाएगा।
राजस्थान में सियासी उठापटक का 19वां दिन
राजस्थान में सियासी उठापटक का आज 19वां दिन है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के घर कैबिनेट की बैठक शुरू चल रही है। इसमें विधानसभा का सत्र बुलाने के मुद्दे पर चर्चा हो रही है। राज्यपाल कलराज मिश्र के सवालों का जवाब तैयार कर सरकार तीसरी बार सत्र बुलाने की अर्जी दे सकती है। इससे पहले 2 बार मांग खारिज करने के बाद राज्यपाल ने सोमवार को कहा कि सत्र बुलाने के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार को 21 दिन का नोटिस देने की शर्त माननी पड़ेगी।
राजस्थान में इन 6 विधायकों ने कांग्रेस जॉइन की थी
बसपा से चुनाव जीते राजेन्द्र गुढा (उदयपुरवाटी, झुंझुनूं), जोगेंद्र सिंह अवाना (नदबई, भरतपुर), वाजिब अली (नगर, भरतपुर), लाखन सिंह मीणा (करौली), संदीप यादव (तिजारा, अलवर) और दीपचंद खेरिया (किशनगढ़बास, अलवर) ने सितंबर 2018 में पार्टी छोड़ दी थी।
राजस्थान की राजनीति में बसपा का अब तक का सफर और विवाद
वर्ष 1998 : राजस्थान में बसपा का खाता पहली बार खुला। कांग्रेस को 150, भाजपा को 33 सीटें मिलीं। बसपा के दो विधायकों की जरूरत किसी को नहीं हुई।
वर्ष 2003 : भाजपा 120 सीटें जीत कर बहुमत में आई। कांग्रेस को 56 सीटें मिलीं। बसपा फिर दो सीटें लेकर आई। लेकिन, दोनों ही पार्टियों को उस समय जरूरत नहीं थी।
वर्ष 2008 : बसपा किंग मेकर बनकर उभरी। छह विधायक जीते। कांग्रेस को 96 और भाजपा को 78 सीटें मिली। सीएम अशोक गहलोत ने बसपा विधायकों का विलय कर करवा लिया।
वर्ष 2013 : भाजपा को 163 सीटों के साथ भारी बहुमत। कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट कर रह गई। बसपा के तीन विधायक जीते। लेकिन, सत्ता पक्ष को शायद इनकी जरूरत नहीं रही। विपक्ष को मजबूत करने में जरूर भूमिका रही। क्योंकि कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिल पाई थी।
वर्ष 2018 : फिर बसपा के छह विधायक जीते। कांग्रेस को 100 और भाजपा को 73 सीटें मिलीं। उपचुनाव में एक सीट भाजपा से छीनकर कांग्रेस 101 पर आ गई। बहुमत को और मजबूत करने के लिए गहलोत ने एक बार फिर 2008 को दोहराया और बसपा के छह विधायकों को 16 सितंबर, 2019 में विलय कर लिया गया।