सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है…’ आजादी के दीवाने पं. राम प्रसाद बिस्मिल की जुबां से जब यह पंक्ति निकली थी तो ब्रितानी हुकूमत की जमीन भी डोल गई थी। देश को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण घटना काकोरी ट्रेन कांड के इस नायक की जांबाजी और वतनपरस्ती आज भी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। यूं तो कहीं दस्तावेजों में बिस्मिल ने अपने जन्मतिथि का जिक्र नहीं किया, लेकिन 11 जून को काकोरी ही नहीं, देशवासी इस अमर सपूत की जयंती के तौर पर श्रद्धा के साथ याद करते हैं।विद्रोही ने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत ने गोडा जेल में 17 दिसम्बर 1927 को क्रांतिकारी राजेन्द्र नाथ लाहड़ी को फांसी पर लटका दिया। वहीं 19 दिसम्बर 1927 को अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखापुर जेल में व 19 दिसम्बर को ही अमर शहीद अशफाक उल्ला खां को उत्तरप्रदेश की फैजाबाद जेल में फांसी पर लटका दिया गया व इसी दिन ठाकुर रोशन सिंह को भी फांसी दी गई। इन तीनों महान क्रांतिकारियों के बलिदान से देश में अंग्रेजों के विरूद्घ सशस्त्र संघर्ष करने के क्रांतिकारी आंदोलन में एक नई प्ररेणा व उत्साह पैदा हुआ, जिसके कारण शहीद चन्द्रशेखर आजाद व सरदार भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव जैसे वीर क्रांतिकारियों ने क्रांति व बलिदान का एक नया इतिहास रचा।