कोरोना संकट की वजह से झारखंड को बेरोजगारी के मोर्चे पर जूझने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। कोरोना ने झारखंड में आधे से अधिक लोगों के रोजगार को ग्रास बना लिया है।लाकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के आने की वजह से राज्य में बेरोजगारी दर की में लगभग पांच गुना उछाल आया है। सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकानामी (सीएमआइइ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर झारखंड में बढ़ी है।
मई महीने में बेरोजगारी देश में सबसे अधिक 69.2 फीसदी पर पहुंच गई है। इसके साथ ही झारखंड में बेरोजगारी के पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए हैं। आर्थिक विश्लेषकों के प्रसिद्ध थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनीटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी की ओर से मई के बाद जारी ताजा आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है।
CMIE की रिपोर्ट को अगर जमीनी हकीकत के करीब माने तो झारखंड में कोरोना काल के दो महीनों अप्रैल और मई में 50.5 फीसदी लोग बेरोजगार हो गए हैं। मार्च में झारखंड में बेरोजगारी का आंकड़ा 8.2 फीसदी था। अप्रैल में यह 38.9 फीसदी बड़कर 47.1 फीसदी और मई में69.2 फीसदी तक हो गया है। झारखंड में राष्ट्रीय औसत 22.5 फीसदी के मुकाबले ढाईगुना से भी अधिक बेरोजगारी है। पड़ोसी बिहार में यह 46.2 फीसदी ही है। उत्तर प्रदेश में यह 20.8 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 11.3 फीसदी और ओड़िशा तथा पश्चिम बंगाल में क्रमश: 9.6 फीसदी और 17.4 फीसदी है। झारखंड में बेरोजगारी के आंकड़ों के इस भयावह स्तर पर चले जाने के पीछे प्रदेश में लगातार लौट रहे प्रवासी मजदूरों के हुजूम को कारण बताया जा रहा है। रिवर्स माइग्रेशन से प्रदेश में आ रहे कार्यबल के पूरे हिस्से में रोजगार देने में हो रही देरी भी इसका एक पक्ष है।
झारखंड ग्रामीण बेरोजगारी के मामले में भी देश के सबसे ऊंचे पायदान पर चला गया है। मई में झारखंड की ग्रामीण बेरोजगारी 55.1 फीसदी आंकी गई। जो राष्ट्रीय औसत 21.6 फीसदी के मुकाबले ढाईगुने से भी अधिक है। यहां तक कि पड़ोसी बिहार भी इस मामले में झारखंड से अच्छी स्थिति में है। बिहार के गांवों में बेरोजगारी केवल 47.3 फीसदी है। पड़ोसी उत्तर प्रदेश में यह 16.9 फीसदी है। पश्चिम बंगाल में यह 18.4 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 7.6 फीसदी और ओड़िशा में 9.4 फीसदी है। शहरी बेरोजगारी के मामले में झारखंड पुडुचेरी के 75 फीसदी के बाद 70.2 फीसदी के साथ देश में दूसरे नंबर पर है। यहां भी भारत के 24.2 फीसदी की तुलना में झारखंड में लगभग तिगुना शहरी बेरोजगारी है। बिहार में शहरी बेरोगारी 37.9 फीसदी है।
झारखंड में छलांग लगाती बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण मजदूरों के रिवर्स माइग्रेशन के अलावा खेती के सीजन का खत्म हो जाना भी है। धान की रोपाई लगभग हो चुकी है। दूसरे फसलों में रोजगार की कोई बड़ी संभावना नहीं है। नहीं तो मजदूरों की बड़ी संख्या को इसमें खपाया जा सकता था। इसके अलावा उद्योग-धंधे के अधिकतर बंद होने के कारण पहले से कार्यरत लोग भी घर बैठे हैं। स्वरोजगार वालों की भी लॉकडाऊन के कारण ऐसी ही स्थिति है। निर्माण परियोजनाओं के भी पूरी तरह से नहीं शुरू हो पाने के कारण दिहाड़ी मजदूरों के भी काम के लाले पड़े हैं।
झारखंड में बढ़ी बेरोजगार दर को पाटने का सबसे बड़ा माध्यम कृषि ही है। फिलहाल इसी पर सबसे ज्यादा फोकस राज्य सरकार का है। विशेषज्ञों के मुताबिक यही सेक्टर बड़े पैमाने पर रोजगार देने में सक्षम है। इससे जुड़े संसाधनों का भी विकास इसी माध्यम से होगा। पौधरोपण से भी लोगों को जोड़ा जा रहा है। लाकडाउन के दरम्यान बड़े पैमाने पर लौटे मजदूर इससे जुड़ रहे हैैं। इसके अलावा जल संरक्षण योजनाएं भी बड़े पैमाने पर आरंभ की गई है, जिससे लोग जुड़ेंगे तो बेरोजगारी दर में कमी आएगी। हालांकि इसमें एक बड़ा रोड़ा मेहनताना का भी है। झारखंड में सबसे कम करीब 200 रुपये मजदूरी मनरेगा में मिलती है। राज्य सरकार ने इसे बढ़ाकर कम से कम 300 रुपये करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है। झारखंड में बेरोजगारी तो बढ़ी है। परंतु, CMIE के आंकड़ों को अनुमान से ज्यादा नहीं कहा जा सकता है। मनरेगा और दूसरी सरकारी परियोजनाओं में मजदूरों को काम मिलना शुरू हो गया है। इसलिए बेरोजगारी दर में कमी आनी शुरू हो जाएगी…
Vahi झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ और ओडि़शा ने निर्माण समेत उद्योग के क्षेत्र में हाल के वर्षों में तेजी से विकास किया है। इससे वहां का श्रम संसाधन जुड़ा है और बेरोजगारी दर में कमी आई है। कई औद्योगिक घरानों के नए प्रोजेक्ट इन राज्यों में लगे हैैं। जबकि झारखंड में जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो आदि औद्योगिक क्षेत्र को छोड़ दें तो अन्य क्षेत्रों में औद्योगीकरण नहीं के बराबर है। संताल परगना, पलामू, उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में उद्योग कम हैैं। हाल के वर्षों में निर्माण के क्षेत्र में भी काफी मंदी आई है।