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जब बस्तियों तक खाना नहीं पहुंचा तो पैदल ही सफर शुरू कर दिया मौत के डर से खतरों की राह पर निकले लोगों की आपबीती


गुरुग्राम से 45 किलोमीटर पैदल चलने के बाद चंदन कुमार की पत्नी इस स्थिति में नहीं थीं कि आगे एक कदम भी चल सकें। इन्हें वाराणसी तक का सफर ऐसे ही तय करना था।

राष्ट्रीय राजमार्गों पर इन दिनों गाड़ियों की दनदनाहट से तेज मजदूरों के पैरों की थाप गूंज रही है। कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए जब देश भर में लॉकडाउन है। तमाम यातायात ठप पड़ा है। गली-मोहल्ले-बाजार सुनसान हैं। तब हजारों मजदूर देश के अलग-अलग हिस्सों से पैदल चलते हुए अपने-अपने गांव लौट रहे हैं। पूर्व सांसद बलबीर पुंज का कहना है कि ये लोग भूख के डर से नहीं भाग रहे, बल्कि परिवार के साथ छुट्टी मनाने गांव जा रहे हैं। लेकिन ये ‘छुट्टियां’ इन मजदूरों के लिए कितनी क्रूर आपदा बन कर आई हैं, इसकी झलक दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर बीते रविवार आसानी से देखी गई। पढ़ें उस दिन की कहानी, जब दिल्ली का लॉकडाउन फेल हुआ और रोजी से ज्यादा रोटी की चिंता में हजारों लोग आनंद विहार बस टर्मिनल पर जमा हुए।

सुबह के करीब नौ बजे हैं। हरियाणा के गुरुग्राम से पैदल चलते हुए यहां पहुंचे चंदन कुमार के परिवार की हिम्मत अब जवाब दे चुकी है। करीब 45 किलोमीटर पैदल चलने के बाद उनकी पत्नी इस स्थिति में नहीं हैं कि अब एक कदम भी और आगे बढ़ा सकें। सड़क किनारे बने फुटपाथ पर बैठते ही उन्हें उल्टी हो चुकी है। वे लगातार दर्द से कराह रही हैं। इन लोगों को वाराणसी जाना है। चंदन दुविधा में हैं कि पत्नी को ऐसे कराहता हुआ छोड़ वे वाराणसी की गाड़ी खोजने कैसे जाएं।

इन लोगों से कुछ ही दूरी पर सीआरपीएफ के दो जवान तैनात हैं। इनमें से एक के कंधे पर पंप ऐक्शन गन लटक रही है और दूसरे के पास आंसू गैस के गोलों से भरा एक बक्सा है। हालांकि, यहां आंसू गैस का गोला दागने की कोई नौबत नहीं आई है, लेकिन यहां मौजूद अधिकतर लोगों की आंखें आंसुओं से पहले ही डबडबाई हुई हैं। कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर यहां पहुंचे ज्यादातर लोग थकान से बहाल हो चुके हैं और ये सोचकर भी परेशान हैं कि उन्हें अपने गांव की गाड़ी मिलेगी भी या नहीं। सीआरपीएफ के जवान इन लोगों को सड़क के दूसरी तरफ भेज रहे हैं, जहां सैकड़ों बसें पंक्तिबद्ध खड़ी हैं।

डीटीसी की बस चलाने वाले मनीष बताते हैं, ‘यहां करीब 15 हजार लोग जमा हो गए थे। हमने रातभर कई-कई चक्कर लगाकर लोगों को लाल कुआं छोड़ा, जहां से उन्हें उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के लिए गाड़ियां मिली होंगी। डीटीसी की करीब 570 बसें यहां लगी हुई थीं।’ शनिवार रात तक यहां पहुंचे सभी लोगों को सिर्फ लाल कुआं तक ही छोड़ा जा रहा था जो दिल्ली-उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर बसा है। लेकिन रविवार सुबह से करीब तीन सौ बसें सीधे दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के लिए भी चलाई गईं। ‘दिल्ली कॉन्ट्रैक्ट बस एसोसिएशन’ से जुड़े डीएस चौहान बताते हैं, ‘दिल्ली सरकार ने शनिवार सुबह हमसे बसें मांगी थी। हमारी बसें तैयार भी थीं, लेकिन फिर उन्होंने मना कर दिया। फिर शनिवार रात उनका दोबारा फोन आया तो हमने सुबह से करीब तीन सौ बसें लगा दीं, जो लोगों को अलग-अलग शहरों में छोड़ने रवाना हुईं। इसके लिए लोगों से टिकट नहीं लिया गया।’

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