मोदी सरकार ने प्रचंड बहुमत के साथ देश की सत्ता में वापसी करने के बाद कई ऐसे ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं, जो वर्षों से देश में लंबित थे| या यूँ कहें की जिन पर जल्दी फैसला आने की कोई उम्मीद नहीं थी| नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं उनमें तीन तलाक बिल, एनआरसी, जम्मू कश्मीर से धारा 370 का खात्मा और राम मंदिर विवाद का निपटारा प्रमुख है|
ये सभी मुद्दे विवादस्पद और बेहद संवेदनशील थे| पूरा देश इन मामलों के निष्पादन की राह दशकों से देख रहा था| इन चार अति महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों के बाद केंद्र सरकार का अगला टारगेट क्या हो सकता है? इस पर पूरे देश की नज़र है|
राजनाथ सिंह का बयान
राम मंदिर पर फैसला मंदिर के पक्ष में आने के बाद मीडिया से बात करते हुए देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने समान नागरिक संहिता की बात की थी| राजनाथ सिंह के द्वारा इशारों में कही गई इस बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता| राजनाथ सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और कैबिनेट की राजनीतिक मामलों के अध्यक्ष भी हैं| इस लिहाज से उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा होगा की सरकार का अगला कदम क्या होगा ? तो अगर राजनाथ सिंह की बातों पर गौर किया जाए तो सरकार का अगला कदम पूरे देश में समान नागरिक संहिता कानून लागू करना हो सकता है|
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नागरिक क़ानून का होना, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं| समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक़ और ज़मीन-जायदाद के बँटवारे जैसे मामलों में भी सभी धर्मों के लिए एक ही क़ानून लागू होने की बात है|
मौजूदा वक़्त में भारतीय संविधान के तहत क़ानून को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा गया है| दीवानी (सिविल) और फ़ौजदारी (क्रिमिनल)| शादी, संपत्ति, उत्तराधिकार यानी परिवार से संबंधित व्यक्ति से जुड़े मामलों के लिए क़ानून को सिविल क़ानून कहा जाता है|
आसान नहीं लागू करना
अगर हम इस कानून के प्रावधानों पर गौर करें तो भारत जैसे अनेक धर्मों और संस्कृतियों वाले देश में, जहां सभी धर्मों के अपने अपने रीती रिवाज और नियम कानून हैं, वहां समान नागरिक संहिता कानून को लागू करना सरकार के लिए एक दुष्कर कार्य होगा|
जानकारों के अनुसार ”इस बिल को बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत यह आएगी कि शादी और संपत्ति जैसे मामलों में अलग-अलग धर्मों के अपने-अपने नियम क़ानून हैं| उन सभी नियमों को एक करने में कई समुदायों को नुकसान हो सकता है कुछ को फ़ायदा भी हो सकता है| ऐसे में सभी को बराबरी पर लाने के लिए समायोजन करना बहुत मुश्किल होगा|”
संविधान के अनुसार समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य (केंद्र और राज्य दोनों) की ज़िम्मेदारी है| कानूनविदों के अनुसार “यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की बात करें तो उसमें दो पहलू आते हैं| पहला सभी धर्मों के बीच एक जैसा क़ानून| दूसरा उन धर्मों के सभी समुदायों के बीच भी एक जैसा क़ानून|” यह जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल (नीति निर्देशक तत्व) में ज़िक्र किया गया है कि आने वाले वक़्त में हम समान नागरिक संहिता की दिशा में प्रयास करेंगे| अभी तक इस दिशा में कोई बड़ा क़दम नहीं उठाया गया है|
इस कानून से किसी एक धर्म से संबंधित लोगों को परेशानी नहीं होगी बल्कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को इस कानून के साथ सामंजस्य बैठना होगा| इसके साथ ही सरकार के लिए भी इस कानून को लागू करना एक बड़ी चुनौती होगी|