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क्रिकेट ने बदली अफ़ग़ानिस्तान की फिजा

इस्लामिक देश है। जो कि चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत, चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान दशकों से आंतकवाद की मार झेलता आ रहा है, जिसका मुख्य कारण तालिबान है। देश में लोकतांत्रिक सरकार का शासन है पर सैन्य दृष्टि से अभी सी मजबूत नही है। देश में नाटो की सेनाएं बनी हुई हैं जो अफ़ग़ानिस्तान में आंतकवाद को काबू करती है और इसे आंतकवाद मुक्त करने में प्रयासरत है। 90 के दशक में तालिबान का उदय हुआ जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी। जिसके बाद धीरे—धीरे तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में अपने पैर पसारने लगा। शुरूआती दौर में भ्रष्ट्राचर पर लगाम लगाने, अव्यवस्था पर अंकुश लगाना और अपने कब्जे वाले इलाक़ों को सुरक्षित किया जिससे वहां के लोग व्यवसाय कर सके। इसके बाद अपने मनमाने तरीके से लोगों पर अपने कानून थोप दिए गए। जिसमें पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा गया जबकि स्त्रियों को बुर्क़ा पहनने के लिए कहा गया। जिसके बाद टीवी, सिनेमा और संगीत पर पूरी तरह से पाबन्दीकर दी। यही नही 10 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर भी रोक लगा दी। न्यूयॉर्क में 9/11 के हमले के बाद पूरी दुनिया का ध्यान इस संगठन पर गया। न्यूयॉर्क हमलों के दोषियों (ओसामा बिनलादेन और अल क़ायदा) को पनाह देने का आरोप लगाया गया। इस हमले ने पूरी दुनिया को हिला दिया और तालिबान का असली चेहरा लोगों के सामने आ गया। 7 अक्टूबर 2001 में अमरीका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला बोल दिया। जिसके बाद अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध जैसे हालात बने रहते हैं। हिंसक हमले लगातार बढ़ने से यहां नाटो का दवाब है, जिस वजह से हालात अब पहले से बेहतर हैं। इनका सबसे ज्यादा नुकसान युवाओं पर पड़ा ​जो शिक्षा के अभाव के चलते लगातार तालिबान लड़कों का हिस्सा बनते गए। ऐसे में युवाओं को तालिबान एक भविष्य के रूप में दिखाई दिया जिस वजह से अफ़ग़ानिस्तान के गरीब व मध्यम तबके के परिवार के युवा तालिबान में शामिल होंने लगे। नाटो सेना के आने से देश के हालात में धीरे—धीरे सुधार देखने को मिल रहा है। जहां तालिबान ने पूरे अफ़ग़ानिस्तान को गर्त में धकेलने का काम किया वहीं अब खेल के जरिए बदलाव की उम्मीद दिखाई दे रही है। अफगानिस्तान के लोकप्रिय खेलों में क्रिकेट और फुटबॉल है। अफ़ग़ानिस्तान के संबंध भारत से अच्छे होने के कारण भारत का काफी प्रभाव पड़ा है खासतौर पर क्रिकेट का। खेलों की ओर युवाओं को बढावा देने के लिए अफगान स्पोर्ट्स फेडरेशन का गठन किया गया। अफगानिस्तान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की क्रुगर्सडॉर्प में नामीबिया पर जीत ने उन्हें अप्रैल 2009 में आधिकारिक वन डे अंतर्राष्ट्रीय दर्जा दिया। 2010 में अफगानिस्तान की राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम का गठन किया गया। जून 2013 से 2017 तक अफ़ग़ानिस्तान आईसीसी का सहयोगी सदस्य भी रह चुका है। 22 जून 2017 को अफ़ग़ानिस्तान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद का पूर्ण सदस्य बन गया, जिसने राष्ट्रीय टीम को आधिकारिक टेस्ट मैचों में भाग लेने का अधिकार दिया गया। पूर्व भारतीय कोच लालचंद राजपूत भी एक वक्त में अफ़ग़ानिस्तान के कोच रहे,  मनोज प्रभाकर भी बाद में बॉलिंग को चबने। जिससे क्रिकेट का असर अफगानिस्तान के युवाओं पर ओर गहरा होता गया। वर्तमान समय में अफ़ग़ानिस्तान के पास तीन ऐसे स्पिनर हैं जो विश्व स्तरीय हैं। रशिद खान तो विश्व के टॉप तीन गेंदबाजो में गिने जाते हैं। इसके अलवा मुजीब और मोहम्मद नबी भी हैं। आईपीएल में ना जाने कितने खिलाड़ियों की किस्मत चमकी है। वहीं अफगानिस्तान के रशिद खान और मोहम्मद नबी की भी किस्मत चमकी है। आईपीएल में मोहम्मद नबी को 30 लाख और रशिद खान को 4 करोड़ में खरीदा गया था। क्रिकेट ने काफी हद तक युवाओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है। आज के समय में अफ़​ग़ानिस्तान के मैदानों में बच्चों और युवाओं को क्रिकेट खेलते देखा जाता है। क्रिकेट के आ जाने से अफ़​ग़ानिस्तान के लोगों में एक उम्मीद जागी है जिससे वे खूद को अच्छा भविष्य दे सकते हैं। अफ़ग़ानिस्तान 2019 में पहली बार विश्व कप ​खेल रही है जिससे अफ़ग़ानिस्तान विश्व के सामने अपनी एक नई मिशाल पेश करेगा है। अगर बीते सालों की बात की जाए तो खुद अफ़ग़ानिस्तान ने भी नहीं सोचा होगा कि वे विश्व कप की टीमों में शामिल होंगे या नही। पर अफगानिस्तान के युवा क्रिकेटरों ने जिस तरह से पिछले चार सालों में जो शानदार प्रदर्शन किया है वह काबिलेतारीफ रहा है। इससे साफ देखा जा सकता है क्रिकेट ने ​किस तरह से वहां के लोगों के जीवन पर असर किया है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्रिकेट ने पूरी तरह से आंतकवाद की ओर बढ़ रहे युवाओं को एक  उम्मीद की किरण दिखाई है। अफ़ग़ानिस्तान में अभी भी आतंकवाद का पूरी तरह से खात्मा करने में अभी कई ओर साल लगेंगे। लेकिन क्रिकेट ने आतंकवाद की ओर बढ़ रहे लोगों का रूख बदला है और आशा कि एक किरन जगाई है सिर्फ आतंकवाद को अपना लेना ही अफ़ग़ानिस्तान के युवाओं के पास आखिरी विकल्प नही है।

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